अमेरिकी टैरिफ: आपदा में अवसर
How Indian auto industry can transform the US auto tariff challenge into an opportunity.
Trump announced a 25% tariff on all auto imports from April 3. What will be the consequences of this tariff increase on the Indian auto industry? How can the Indian government and auto industry still navigate their way through the new tariff regime and in fact, find a valuable opportunity in it? Read the entire story in this guest article by Prof. Anupam Manur. Originally Published in Times of India, March 27, 2025. Translation by Parikshit Suryavanshi.
आइए समझते हैं नए अमेरिकी ऑटो टैरिफ के मायने दुनिया और भारतीय ऑटो इंडस्ट्री के लिए।
अमेरिकी टैरिफ बढ़ने से ऑटो पार्ट्स कंपनियां प्रभावित तो होंगी, लेकिन हमारी बड़ी कंपनियों और विवेकशील व्यापार समझौते की मदद से हम इस आपत्ति को अवसर में बदल सकते हैं।
ट्रंप ने 26 मार्च को नए टैरिफ जारी करते हुए वैश्विक व्यापार पर अपना हमला जारी रखा। इस बार उन्होंने ऑटोमोबाइल सेक्टर को अपना निशाना बनाया और ऑटोमोबाइल और ऑटो पार्ट्स के आयात पर 25% टैरिफ लगा दिया। यह नया टैरिफ 3 अप्रैल से लागू होगा। यह कदम कथित तौर पर संकटग्रस्त अमेरिकी ऑटोमोबाइल सेक्टर को उबारने के लिए उठाया गया है। लेकिन सच्चाई यह है कि अमेरिका के इस सेक्टर को एक बड़ा झटका ट्रंप के पहले कार्यकाल में ही लगा था। अमेरिकी ऑटो इंडस्ट्री कुछ समय पहले से ही अपनी चमक खो रही है। ट्रंप के टैरिफ से स्टील और अल्युमिनियम जैसा कच्चा माल महंगा होने से इसका और भी नुकसान हुआ है।
वैश्विक कार निर्माताओं में चिंता
ट्रंप के इस निर्णय के दूरगामी वैश्विक परिणाम होंगे जिनकी शुरुआत अमेरिका से होगी। अमेरिका में बिकने वाली 1.6 करोड़ कारों में से लगभग आधी कारें आयत की जाती हैं। इसका मतलब अब अमेरिकी ग्राहकों को नई कार के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे। नए टैरिफ के कारण अमेरिका में कारों का उत्पादन और बिक्री महंगी हो जाएगी, और साथ ही आयात भी महंगा होगा। इससे अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए सिर्फ ज्यादा महँगी कारें और कम विकल्प रह जाएंगे।
अमेरिकी बाजार में निर्यात प्रभावित होने की आशंका से जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी और भारत की ऑटोमोबाइल कंपनियों के शेयरों में पहले ही भारी गिरावट देखी जा रही है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि जनरल मोटर्स और फोर्ड जैसी अमेरिकी वाहन कंपनियों के शेयर भी काफी गिर गए हैं, जो इस बात का संकेत है कि ऑटो पार्ट्स पर ऊंचे टैरिफ से वे भी प्रभावित होंगी।
भारत पर इसके क्या परिणाम होंगे?
हालांकि भारत अमेरिका को ज्यादा कारें नहीं बेचता (2024 में भारत ने अमेरिका को केवल 9 मिलियन डॉलर की कारें बेचीं), लेकिन इस बार के टैरिफ का असर भारतीय कंपनियों पर भी पड़ेगा, क्योंकि ये कंपनियां वैश्विक ऑटोमोबाइल सप्लाई चेन से जुड़ी हुई हैं। Tata Motors, Eicher Motors, Sona BLW और Samvardhana Motherson जैसी कंपनियों को ज्यादा जोखिम है। Tata Motors सीधे अमेरिकी बाजार में कारें नहीं बेचती, लेकिन इसकी उपकंपनी Jaguar Land Rover की अमेरिका में मजबूत उपस्थिति है। इसकी 22% कारें अमेरिका में बिकती हैं।
भारत ने 2024 में अमेरिका को 2.2 अरब डॉलर के ऑटो पार्ट्स का निर्यात किया, जो भारत के कुल वैश्विक ऑटो पार्ट्स निर्यात का 29.1% था।
भारत को ज्यादा नुकसान झेलना पड़ सकता है ऑटो पार्ट्स सेक्टर में, क्योंकि यह इंडस्ट्री ग्लोबल सप्लाई चेन से गहनता से जुड़ी हुई है और अमेरिकी कार निर्माताओं के लिए एक महत्वपूर्ण सप्लायर बनकर उभरी है। भारत ने 2024 में अमेरिका को 2.2 अरब डॉलर के ऑटो पार्ट्स का निर्यात किया, जो भारत के कुल वैश्विक ऑटो पार्ट्स निर्यात का 29.1% था।
इसके अलावा, भारतीय कंपनियां दक्षिण कोरिया, जापान और यूरोप को भी ऑटो पार्ट्स निर्यात करती हैं। इन पार्ट्स के इस्तेमाल से बननेवाली कारें भी अंततः अमेरिका में ही पहुंचती हैं। इसलिए, इस टैरिफ का भारत के ऑटोमोबाइल उद्योग पर अप्रत्यक्ष रूप से बड़ा असर पड़ेगा। भारत में इस क्षेत्र में लगभग 3.7 करोड़ लोग काम करते हैं और 2024 में इसका कुल टर्नओवर 74.1 अरब डॉलर था।
2024 में ऑटो पार्ट्स इंडस्ट्री ने कुल 21.2 अरब डॉलर का निर्यात किया, जिसमें ड्राइव ट्रांसमिशन और स्टीयरिंग, इंजन पार्ट्स, बॉडी/चेसिस, सस्पेंशन और ब्रेकिंग सिस्टम जैसे घटक शामिल थे। वास्तव में, भारतीय ऑटो पार्ट्स इंडस्ट्री कुछ ऐसी चुनिंदा मेन्युफेक्चरिंग इंडस्ट्रीज में से एक है जिसने ट्रेड सरप्लस दर्ज किया है। 2023-24 में यह सरप्लस 30 करोड़ डॉलर तक पहुंच गया था।
लेकिन उम्मीद अभी बाकी है
हालांकि यह खबर पूरी तरह से बुरी नहीं है। ये टैरिफ भारत के सभी प्रतिस्पर्धियों पर भी समान रूप से लागू होंगे। जैसे, चीनी निर्माताओं को 20-25% का अतिरिक्त नुकसान उठाना पड़ेगा, क्योंकि उनके उत्पादों पर एक अतिरिक्त टैरिफ लगाया गया है। मेक्सिको की स्थिति भारत से मामूली बेहतर होगी, और वह भी मुख्यतः कम फ्रेट की वजह से। इस क्षेत्र की स्पर्धात्मकता और इस टैरिफ का सभी प्रमुख प्रतिस्पर्धियों पर होने वाला परिणाम देखते हुए, भारत इस स्थिति से सही-सलामत निकल सकता है।
लेकिन भारत अगर द्विपक्षीय व्यापार वार्ताओं में सफल रहा तो न सिर्फ इस स्थिति से निकल सकता है, बल्कि इस आपत्ति को अवसर में बदल सकता है! दरअसल, कुछ दिन पहले ही अमेरिकी उद्यमियों का एक प्रतिनिधिमंडल द्विपक्षीय व्यापार पर चर्चा करने के लिए भारत आ कर गया है। ट्रंप पहले ही भारत को ‘टैरिफ किंग’ कह चुके हैं, और यह पूरी तरह गलत भी नहीं है। भारत दुनिया भर से आयातित उत्पादों पर औसतन 12% टैरिफ लगाता है, जो कि हमारे अधिकांश ट्रेडिंग पार्टनर्स की तुलना में काफी ज्यादा है। अकेले अमेरिका को ही लें तो, भारत अमेरिकी निर्यातकों पर औसतन 7.7% टैरिफ लगाता है, जबकि अमेरिका भारतीय निर्यातकों पर केवल 2.8% टैरिफ लगाता है। यहीं लगभग 4.9% का फर्क दिखाई देता है। कुछ उत्पादों पर तो यह अंतर और भी अधिक है, जैसे अमेरिका से भारत आने वाले कृषि और कृषि संबंधी उत्पादों पर 33% और ऑटोमोबाइल्स पर 21% टैरिफ लगाया जाता है।
हम क्या कर सकते हैं?
हमें द्विपक्षीय समझौते के माध्यम से अमेरिका के साथ एक कम-टैरिफ प्रणाली की शुरुआत करनी चाहिए, इसके बदले में हमें भारतीय उत्पादों के लिए अमेरिकी ज्यादा मार्केट एक्सेस की मांग करनी चाहिए।
अमेरिका भारत के लिए एक महत्वपूर्ण व्यापारी साझेदार है। यह एकमात्र ऐसा बड़ा पार्टनर है जिसके साथ हमारा ट्रेड सरप्लस काफी ज्यादा है। अगर भारत अपने निर्यातकों की रक्षा करना चाहता है तो उसे टैरिफ कम करने पर जरूर विचार करना चाहिए। न केवल ट्रंप के रेसिप्रोकल टैरिफ से बचने के लिए, बल्कि इसलिए भी क्योंकि कि कम टैरिफ से भारतीय उत्पादकों के लिए कच्चे माल की कीमतें भी स्वाभाविक रूप से कम होंगी।
हमें द्विपक्षीय समझौते के माध्यम से अमेरिका के साथ एक कम-टैरिफ प्रणाली की शुरुआत करनी चाहिए, इसके बदले में हमें भारतीय उत्पादों के लिए अमेरिकी ज्यादा मार्केट एक्सेस की मांग करनी चाहिए। यह रणनीति सफल रही तो हम इसे अपने अन्य प्रमुख व्यापारी साझेदारों के साथ भी लागू कर सकते हैं। आज जब पूरी दुनिया सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के साथ व्यापार युद्ध में उलझी हुई है, तभी भारत के पास व्यापार को आर्थिक विकास का एक साधन बनाने का सुनहरा अवसर है। अगर भारत सही रणनीति अपनाता है, तो ऑटोमोबाइल और इससे जुड़ी इंडस्ट्रीज इस पूरे घटनाक्रम से फायदा उठा सकती हैं।
-अनुपम मणूर
Anupam Manur teaches economic reasoning and macroeconomics at the Takshashila Institution. He has published several editorials in the Mint, Financial Express, The Hindu, NDTV, Scroll, Deccan Herald, Bloomberg Quint, AsiaGlobal Online and others. He has edited three books published by the Takshashila Institution Press, and is the co-author of ‘We, the Citizens’, an illustrated guide to public policy concepts.
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