India1 is Flying, पर भारत की रेल क्यों पटरी से उतर रही है?
Bharat needs more Commuter Trains.
कुछ समय पहले मैं अपने परिवार के साथ घूमने हंपी जा रही थी। मुझे लगा कि, हमें पहले पुणे से बेंगलुरु जाना पड़ेगा और फिर वहाँ से गाड़ी करके हंपी जाना पड़ेगा। लेकिन आश्चर्य तब हुआ जब पता चला कि, पुणे से हूबली के लिए सीधी फ्लाइट है। हूबली पहुँचने के बाद आपको बाई रोड हंपी जाने के लिए सिर्फ दो घंटे लगते हैं।
ये जानकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि, हूबली जैसे छोटे शहर के लिए भी डेली फ्लाइट्स हैं। उसी समय यह भी पता चला कि, पुणे और सूरत के बीच भी फ्लाइट्स चलने लगी हैं। इससे मुझे लगा कि, भारत का एविएशन सेक्टर बहुत अच्छा चल रहा है। वैसे भी मुंबई या बेंगलुरु में बड़ी India 1 वाली फील आती है। इन शहरों में ज़्यादातर वो सारी सुविधाएँ मिल जाती है जो सिंगापूर में मिलती है, अगर आप ट्रैफिक और हवा-पानी को नज़रअंदाज़ कर दो, तो। Ikea स्टोर, Uniqlo के कपड़े और भी बहुत कुछ। और तो और, हाल ही में मेरे एक दोस्त ने बताया कि, अब बेंगलुरु में सिंगापूर जैसे नाश्नेते के लिए Kopitiam Lah भी खुल गया है! सचमुच लगता है कि India is flying!
पर बड़े शहरों में ऊँची उड़ती हुई ये फ्लाइट मेरे शहर नवसारी तक पहुँचते पहुँचते ज़मीन पर आ जाती है। अचानक ही India1 से निकलकर आपका आगमन भारत में हो जाता है। सॉरी सॉरी, कहना चाहिए कि, नवसारी के लिए प्रयाण करते ही India1 से आपका प्रस्थान हो जाता है। पूछो क्यों? क्योंकि नवसारी के लिए आपको ट्रेन लेनी पड़ती है।
एक बार ऐसे ही दिल्ली वाले दोस्तों से बात हो रही थी। ट्रेन का नाम सुनते है उन में से एक ने कहा, “आज कल ट्रेन से कौन जाता है? सब जगह तो फ्लाइट मिल जाती है।”
“भाई, हम जैसे लोग जिनके शहर तक फ्लाइट नहीं जाती, वो जाते हैं।”
“रोड भी तो अच्छे हैं अब। गाडी कर लो।”, दिल्ली वाली दोस्त ने कहा।
“हाँ, ट्रेन की टिकट न मिलने पर वही करना पड़ता है। पर रोड अच्छे हैं नहीं, अच्छे थे कहो।” मैंने भी चिपकाया। “मुंबई से गुजरात की ओर जाने वाला मेन हाइवे काफ़ी समय से खुदा हुआ है।”
हर रोज़ कितने किलोमीटर रोड बना ये नंबर तो आये दिन अखबार में छपता रहता है। पर रेलवे से जुडी कौन सी ख़बर झलकती है?
आज ही पढ़ा कि, नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भीड़ की वजह से 18 लोगों की मृत्यु हो गई। ये ख़बर पढ़ के मैं ‘trigger’ हो गयी। मुझे वो पल याद आ गया जब मैं मुंबई से ट्रेन पकड़ने की कोशिश कर रही थी। उस वक्त मुझे लगा था कि, मेरे घर पहुँचने या मेरे कुचले जाने के बीच बस मेरी माँ की प्रार्थना ही है।
पर हम भारतीयों को ऐसी भीड़ की आदत हो गई है। मुंबई इस मामले में ज्यादा बदनाम है, लेकिन सूरत से इंटरसिटी पकड़ने वालों का भी यही हाल है। ऐसा हर प्रदेश में होता होगा।

मेरा एक भाई पिछले पंद्रह साल से नवसारी से सूरत के बीच उप-डाउन करता है।
“अगर इंटर छूट गयी तो फिर सीधे रात ११ बजे तक क्वीन का इंतज़ार करना पड़ता है। सरकार बुलेट ट्रेन बना रही है लेकिन बुलेट ट्रेन तो छोटे स्टेशन्स पर नहीं रुकेगी ना। इतने सालों में डैली पैसेंजर्स के लिए कोई नयी ट्रेन आयी ही नहीं है। बस है, लेकिन वो ट्रैफिक में डेढ़ दो घंटे लगा देती है। टाइम के हिसाब से ट्रेन ही सही है।”

नवसारी जैसे छोटे सॅटॅलाइट शहरों से बहुत भारी मात्रा में लोग सूरत, वापी, अंकलेश्वर और भरुच जैसे शहरों तक रोज़ाना आते-जाते हैं। कुछ तो मुंबई तक भी जाते हैं। एक तरह से ये एक बहुत बड़ा मेट्रोपोलिटन झोन बन चूका है। आज वापी में नौकरी है, अगले साल बदलकर सूरत में हो सकती है। इसलिए घर परिवार अपने ही शहर में रखते हैं और वहीं से डैली एक-आधा या डेढ़ घंटे तक का उप-डाउन करते हैं।
“पहले तो गुजरात एक्सप्रेस में पास होल्डर्स के लिए फर्स्ट क्लास का डिब्बा था। अब तो वह भी नहीं है। पास होल्डर्स के लिए एक-दो ही डिब्बे हैं जब की लोग कितने सारे। न चाहते हुए भी हमें रिजर्वेशन वाले डिब्बे में ही चढ़ना पड़ता है। अब तो उस में भी खड़ा रहना मुश्किल हो जाता है। बैठने की तो कोई उम्मीद ही नहीं रखता।”
अपने काम के लिए रोज़ सफर करने वाले ये लोग या तो स्टूडेंट हैं या तो किसी कंपनी में कामगार। क्या होगी इनकी प्रोडक्टिविटी जब दिन की शुरुवात ही कोई जंग जीतने जैसी हो।
वंदे भारत ट्रेन तो आ रही है। अहमदाबाद से मुंबई के लिए तो फ्लाइट भी मिल सकती है। लेकिन छोटे और मध्यम अंतर पर लोग बड़ी संख्या में नियमित रूप से सफर करते हैं। हमें और कम्यूटर्स ट्रेन चाहिए। यहां स्पीड के साथ जरूरी है - फ्रिक्वेंसी, कनेक्टिविटी और टाइमलीनेस।
New York City जैसे बड़े शहर का नाम आते ही अकसर NYC सबवे का जिक्र होता है, लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि, आस-पास के इलाकों से हर रोज लगभग एक दस लाख लोग न्यूयॉर्क पहुंचते हैं। Amtrak और मेट्रो नौर्थ लाइन Connecticut, New Jersey और New York स्टेट के अन्य क्षेत्रों से लोगों को न्यूयॉर्क तक लाती है।

ग्रेटर टोक्यो एरिया में दुनिया का सबसे बड़ा मेट्रोपोलिटन रेल नेटवर्क है जिसे 4 करोड़ पैसेंजर हर रोज़ इस्तेमाल करते हैं। इसका नक्शा देखकर लगता है कि मानो मायाजाल है।
महिलाओं के लिए भी ट्रेन ही ज्यादा सुरक्षित ट्रांसपोर्ट है।
मेरी एक दोस्त इसी रूट पर बस से सफ़र करती थी। पर कोई भी अनजानी प्राइवेट बस में बैठना पड़ता था। वो भी हाइवे वाले रस्ते पर। एक बार एक बस ने अलग रूट ले लिया तो घबराहट के मारे उसने पति को SOS भेज दिया। पति सारा काम छोड़कर उसकी लोकेशन ट्रैक करते हुए अपनी गाड़ी लेकर चल पड़ा। नसीब से सब ठीक था, पर उसका डर जायज़ था।
ये छोटे सॅटॅलाइट शहर बड़े शहरों का बोझ थोड़ा कम कर देते हैं। बेहतर कनेक्टिविटी से छोटे सॅटॅलाइट शहर और बड़े मेट्रो, दोनों का ही फ़ायदा है। इन रूट पर रेल लाइन तो बिछी हुई है, बस कैपेसिटी बढ़ाने की ज़रूरत है।
नए ट्रेक्स, आधुनिक सिग्नलिंग प्रणाली और ज़्यादा ट्रेन छोड़ने से ट्रेन की फ्रीक्वेंसी बढ़ाना इतना मुश्किल नहीं होना चाहिए।
लेकिन रेलवे के प्रति एक जनरल मायूसी है। India1 ने तो रेलवे में जाना छोड़ ही दिया है। अब गोवा के बदले वियतनाम जाना पड़ेगा इसका दुखड़ा रो रहा है। रोजाना रेल से यात्रा करने वाले अपने अपने क्षेत्रों में बटें हुए हैं। सोशल मीडिया पर इनके रोष की तस्वीरें तो वायरल होती हैं, पर इनका दैनिक दर्द तो यही जानते हैं।
बीच-बीच में हम ऐसी भगदड़ या रेल दुर्घटना के समाचार सुनते हैं और फिर भूल जाते हैं। इस्तीफा आज कल कोई देता है नहीं। मंत्रीजी माफ़ी मांग लेते हैं और हम भारतीय पट से उन्हें माफ़ी ही क्या, वोट भी दे देते हैं।
एक झांकी
वैसे मैं सारा दोष सिस्टम पर नहीं डालना चाहती। कभी कभी सिस्टम काम नहीं करता और कभी कभी सिस्टम होने पर भी हम साथ नहीं देते। मुझे लगता है कि, इस बारे में मुझे ज़्यादा कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है, ये फोटो काफ़ी है।
सादर,
ख्याति
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चोला साम्राज्य पर अनिरुद्ध कनिसेट्टी के साथ ये पुलियाबाज़ी सुनी की नहीं?
IR won't improve without competition. We need a few private train operators along with the sarkaari ones. Tracks and signalling should remain with the government. Bibek Debroy Committee had some of these recommendations.