पेश है आज़ादी की राह सीरीज़ की तीसरी कड़ी। इस सीरीज़ में हम भारत के इतिहास में झाँकने की कोशिश करते है ताकि १९ वी सदी से लेकर आज़ादी के समय को और नज़दीकी से समझ पाएं। इस हफ्ते हम बात करते है १५० साल पुरानी एक बहस पर जो आज भी जारी है। स्वदेशी बनाम खुले व्यापार - इस विषय पर १८७३ में लोग क्या चर्चा कर रहे थे और क्यों। सुनिए और पुलियाबाज़ी पसंद आये तो इस सीरीज के और अंक भी सुनिए।
आज़ादी की राह: स्वदेशी बनाम खुले व्यापार की…
पेश है आज़ादी की राह सीरीज़ की तीसरी कड़ी। इस सीरीज़ में हम भारत के इतिहास में झाँकने की कोशिश करते है ताकि १९ वी सदी से लेकर आज़ादी के समय को और नज़दीकी से समझ पाएं। इस हफ्ते हम बात करते है १५० साल पुरानी एक बहस पर जो आज भी जारी है। स्वदेशी बनाम खुले व्यापार - इस विषय पर १८७३ में लोग क्या चर्चा कर रहे थे और क्यों। सुनिए और पुलियाबाज़ी पसंद आये तो इस सीरीज के और अंक भी सुनिए।