दो शहरों की एक कहानी । A Tale of Two Cities
A comparison between the public transport systems of London and Bengaluru
—प्रमोद के.
बेंगलूर के ट्रैफिक की हताशा मशहूर है और उसके पब्लिक ट्रांसपोर्ट का हाल, बेहाल। भारत के बाकी बड़े शहर भी इसी समस्या से जूझ रहे हैं।
ऐसे में प्रेरणा के लिए क्यों न हम विश्व के बेहतरीन शहरों की ओर देखें? अगर हम अपनी तुलना उन शहरों से करें, तो शायद हमारी व्यवस्था की कमियाँ, इन कमियों की गहराइयाँ और कुछ नए पहलुओं को हम बेहतर समझ सकेंगे।
तो ऐसी ही एक शानदार मिसाल है लंडन, जो बेंगलूर से दोगुना बड़ा है और उसकी आबादी भी लगभग बेंगलूर जितनी ही है, फिर भी लाखों लोग बिना किसी परेशानी के 30-60 मिनटों में रोज़ अपने ऑफिस तक का सफ़र आराम से तय कर पाते हैं।
यह कैसे संभव होता है इसे समझने के लिए, आइए कुछ नक्शे देखते हैं।
(आप इन नक्शों को इंटरेक्टिव फॉर्म में यहाँ देख सकते हैं: Data Musings | A Tale of Two Cities: How People Move )
मेट्रो (सबकी पसंद)
लंडन की विश्व-प्रसिद्ध अंडरग्राउंड ट्रेन उर्फ़ Tube सन 1863 में शुरू हुई और अब ओवरग्राउंड, लाइट रेल और ट्रैम का एक ज़बरदस्त नेटवर्क भी उसमें शामिल हो गया है। शहर के केंद्र में सभी लाइनें एक-दूसरे को पार करती हैं और साथ ही स्टेशन भी चल कर सिर्फ़ 10-15 मिनट की दूरी पर हैं। ट्रेन की फ्रीक्वेंसी 3-4 मिनट की होती है और आप किसी भी लाइन से दूसरी लाइन पर आसानी से स्विच कर सकते हैं। शहर के 6 में से 2 एयरपोर्ट भी कनेक्ट किए गए हैं।
बेंगलूर ने अभी बस शुरुआत ही की है। ज़्यादातर नेटवर्क भी सिर्फ़ सड़कों के ऊपर बन रहा है, जो नेटवर्क को अपनी पूरी क्षमता से बढ़ने नहीं देता, अंडरग्राउंड टनल नए optimal routes खोल देती है जो हम लंडन या फिर मुंबई के नए मेट्रो में देख सकते हैं।
बस
लंडन की सुंदर रेड डबल-डेकर बस भी मशहूर है। अक्सर Tube को ज़्यादा याद किया जाता है लेकिन बसें सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होती हैं। नक्शे से साफ़ पता चलता है कि आप चाहे शहर के किसी भी कोने में क्यों न हों, बस 10-15 मिनट चलकर किसी न किसी बस स्टॉप तक ज़रूर पहुँच सकते हैं। ये सही मायने में Last Mile Connectivity है जिसकी वजह से किसी को अपनी ख़ुद की गाड़ी निकालनी ही नहीं पड़ती।
बेंगलूर की BMTC को (OpenStreetMap के डेटा की माने तो) काफ़ी काम करना पड़ेगा। अगर कैपेसिटी, फ्रीक्वेंसी, नेटवर्क और क्वालिटी में ईमानदारी से निवेश किया जाए तो, हमारे शहरवासियों की पीड़ा आसानी से कम हो सकती है। इसके लिए न ज़्यादा पैसों की ज़रूरत है और न ही समय की।
रेल और मेट्रो का नेटवर्क और उनकी पटरियाँ दिखती हैं, लेकिन बसों का नेटवर्क दिखता नहीं। शायद इसीलिए हमारी कल्पना में इनकी हिस्सेदारी कम है, पर ये नक़्शा और रिसर्च दर्शाते हैं कि हमारी समझ कितनी अधूरी है।
रेल
लंडन का रेल नेटवर्क भी काफ़ी ज़बरदस्त है। शहर में 8-9 बड़े और सैंकड़ों छोटे स्टेशन हैं, जो आस-पास और दूर के शहरों को जोड़ते हैं। बिज़ी रूट पर हर 15-20 मिनट में आपको एक ट्रेन मिल जाएगी। चाहें तो आप 2 घंटों में 320 किमी दूर मैनचेस्टर तक भी पहुँच सकते हैं। लाखों लोग आस-पास के शहर-गाँव में रहते हैं और इस सुविधा का लाभ लेकर सिर्फ़ काम के सिलसिले में रोज़ लंडन आते हैं! शहर के अंदर भी वो लोकल ट्रेन या मेट्रो की तरह बाकी हिस्सों को जोड़ती है। इसके ज़रिये आप चार और एयरपोर्ट तक भी पहुँच सकते हैं।
बेंगलूर में इस व्यवस्था पर अभी चर्चा भी नहीं होती। सोचिए की आप चेन्नई (328 किमी), मंगलौर (347 किमी) या कोयंबतूर (340 किमी) से 2 घंटों में बेंगलूर आ पाएँ तो? या फिर हम कम से कम आस-पास के तुमकूर, मैसूर या वेल्लौर की कल्पना तो कर ही सकते हैं।
एलिजाबेथ लाइन
2022 में लंडन में एक और आधुनिक लाइन जुड़ी, जो पूर्व-पश्चिम हिस्सों को अंडरग्राउंड टनल से जोड़ती है। 2-3 मिनट की फ्रीक्वेंसी भी है और शहर के केंद्र से 30-40 मिनट में एयरपोर्ट भी पहुँच सकते हैं।
बेंगलूर में अभी तुमकूर के लिए मेट्रो या रेल का विवाद चल रहा हैं, जबकि लंडन की ये लाइन उतनी ही दूरी 60 मिनट में तय करती है। शहर के बाहर ये रेल है और अंदर अंडरग्राउंड मेट्रो। सोचिए एक प्राचीन unplanned शहर में, जिसमेंं 160 सालों से मेट्रो और रेल हैं, वहाँ अभी भी नए प्रोजेक्ट्स में फुर्ती से निवेश हो रहा है।
अंतिम छोर तक पहुँच
लंडन में मेट्रो, बस और रेल का अच्छा ताल-मेल दिखता है। जहाँ मेट्रो नहीं जाती, वहाँ रेल पहुँचा देती है और जहाँ दोनों नहीं, उधर आप बस के भरोसे जा सकते हैं। हर स्टेशन पर आपको हाई-फ्रीक्वेंसी बस स्टॉप भी मिलेंगे, जिससे लास्ट माइल कनेक्टिविटी के लिए फ़ीडर बसों की ज़रूरत नहीं पड़ती है।
लंडन विश्व के सबसे अमीर शहरों में से एक होने के बावजूद, ज़्यादातर लंडन-वासी आपको पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करते हुए दिखेंगे। किसी के पास अपने स्कूटर या कार को निकालने का बहाना या वजह ही नहीं बचती। लोगों की खुशहाली में इसका बहुत बड़ा योगदान है।
संरचना और डिज़ाइन
इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि लंडन की व्यवस्था प्रशंसनीय है। लेकिन इसके मूल कारण क्या हैं? ब्रिटिश साम्राज्य की दौलत का योगदान तो था ही लेकिन क्या और भी कुछ कारण हो सकते हैं?
एक 2000 साल पुराना बिना प्लानिंग के बना एक शहर, जिसमेंं टेढ़ी-मेढ़ी पतली सड़कें और सैकड़ों हेरिटेज बिल्डिंग हैं, वह अपने आप में एक चुनौती है। फिर भी यहाँ आपको ट्रैफ़िक और प्रदूषण न के बराबर मिलेंगे, बिना खास फ्लाईओवर या 5-6 लेन के रोड के। इन्हीं वजहों से शहर भी एक दम हरा-भरा और समय के साथ मॉडर्न भी रह पाया है।
लंडन का पब्लिक ट्रांसपोर्ट लेआउट
ज़्यादातर शहरों की तरह लंडन के केंद्र में भी एक बिज़नेस डिस्ट्रिक्ट है। ज़ोन 1—सिर्फ़ 3 किमी X 6 किमी में UK की सरकार, न्यायालय, विश्व के सबसे बड़े बैंक, कानूनी फ़र्म, फण्ड, टेक्नोलॉजी और अन्य कंपनियाँ पाई जाती हैं। पब्लिक ट्रांसपोर्ट का बेहतरीन लेआउट लोगों को अलग-अलग कोने से केंद्र तक पहुँचने में मदद करता है—आखिर लोग काम करने के लिए ही तो एक जगह मिलते हैं। यहाँ कोई टेक पार्क या प्राइवेट सोसाइटी नहीं बनाने दिए जाते ताकि हर छोटी सड़क पब्लिक के लिए खुली रहे।
बेंगलूर ने इस मामले में बिल्कुल उल्टे कदम उठाए हैं। बड़े-बड़े टेक पार्क या प्राइवेट सोसाइटी तेज़ी से बन रहे हैं और वो भी शहर के ORR जैसे कोनों में। अब तो PRR और टनल रोड की भी चर्चा हो रही है। क्या ये योजनाएँ बेंगलूर को सही राह पर ले जा रही हैं?
संगठन क्षमता
लंडन में मेट्रो, बस और (ज़्यादातर) रेल—सब ट्रांसपोर्ट फ़ॉर लंडन (TfL) द्वारा मैनेज किए जाते हैं और अन्य ट्रेन नेशनल रेल के समन्वय से चलाई जाती हैं। TfL की जवाबदेही सीधे मेयर को है, जिन्हें लोग चुनाव द्वारा चुनते हैं। हर छोटे-बड़े प्रोजेक्ट में लोगों की राय मांगी जाती है और लोग भी काफ़ी उमंग और जोश के साथ इसमें हिस्सा लेते हैं।
दुनिया के बेहतरीन एक्सपर्ट TfL में शामिल हैं। जैसे उसके CTO शशि वर्मा एक भारतीय नागरिक हैं, आपको दिलचस्पी हो तो आप उनका इंटरव्यू यहाँ सुन सकते हैं: Episode 386: Shashi Verma Made London Move
बेंगलूर में सारे विभाग अलग-अलग ही काम करते हैं—मेट्रो (BMRCL—केंद्र/राज्य सरकार), बस (BMTC—राज्य सरकार), रेल (केंद्र सरकार)। इनमें से किसी की भी न मेयर को जवाबदेही हैं और न ही ये कभी लोगों की राय मंगाते हैं। पाँच साल से मेयर के चुनाव ही नहीं हुए और शहर के कई बड़े फ़ैसले राज्य सरकार खुद ही कर लेती है।
इसलिए बेंगलूर और भारत के अन्य शहरवासियों को ही अब गंभीरता से सोचना चाहिए कि आख़िर वे कैसे शहर चाहते हैं। अपना और इन शहरों का भाग्य अब उन्हीं के हाथ में है।
— प्रमोद के @TheChutneyBoy
प्रमोद (The Chutney Boy) पुलियाबाज़ी के नियमित श्रोता हैं जो लंडन और बेंगलूर में अपना समय बिताते हैं । अपने खाली समय में, वह शहर नियोजन, पब्लिक पॉलिसी और डेटा प्रोजेक्ट्स में दिलचस्पी लेते हैं। इस विषय पर उनका मूल ट्विटर पोस्ट आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
All images (except google maps image) prepared by @TheChutneyBoy
संदर्भ:
डेटा स्रोत: OpenStreetMap, TfL Open Data Hub
उनके अन्य प्रोजेक्ट्स – Data Musings
We welcome articles/blogs/experiences from our readers and listeners. If you are interested in getting your writing featured on Puliyabaazi, please send us your submissions at puliyabaazi@gmail.com. Check out this article for submission guidelines.
Recommendations
नेहरू आर्काइव: नेहरू के सिलेक्टेड वर्क्स के 100 वॉल्यूम अब ऑनलाइन
इतिहास के शौकीनों और पढ़ने-लिखनेवालों के लिए एक जबरदस्त खबर आई है! जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल फण्ड ने नेहरूजी के सिलेक्टेड वर्क्स के पूरे 100 वॉल्यूम अब ऑनलाइन कर दिए हैं। यानी 1903 से लेकर 1964 तक, हिंदुस्तान की सियासत, समाज और उस दौर की उथल-पुथल को समझने का एक बड़ा खजाना अब सिर्फ़ एक क्लिक की दूरी पर है। इन हज़ारों डिजिटल पन्नों में आपको उनके भाषण, लेख और चिट्ठियों के साथ-साथ उनकी जेल डायरी, नोट्स और चुनावी घोषणापत्र भी मिलेंगे, जो उस दौर को आपके सामने जीवंत कर देंगे। और तो और यह पूरा खज़ाना सर्चेबल और डाउनलोडेबल भी है, वो भी बिल्कुल निःशुल्क!
तो जनाब, अगर आपको भी भारतीय इतिहास के समंदर में असली गोता लगाने का शौक है, तो ज़रूर चेक कीजिए: nehruarchive.in
जापान सफ़रनामा। Tokyo, Trains, and the Atomic Shadow
इस हफ़्ते पुलियाबाज़ी पर और एक सफ़रनामा। इस बार चलिए करते हैं जापान की सैर। ३.५ करोड़ की आबादी वाला शहर टोक्यो कैसे चलता है? एटॉमिक बम से धराशयी होने वाला शहर हिरोशिमा आज कैसा दीखता है? जापान के अद्यतन पब्लिक ट्रांसपोर्ट से भारत क्या सीख सकता है?
भारतीय शहरों के लिए एक मॉडेल शहर। Singapore Safarnaama
अक्सर हमारे नेता भारतीय शहरों को सिंगापुर जैसा बनाने का सपना रखते है। क्या है जो हमारे शहर सिंगापुर से सीख सकते हैं? इस हफ़्ते पुलियाबाज़ी पर सुनिए सिंगापुर यात्रा से प्रणय के अवलोकन। इस सफ़रनामा में बात खुले व्यापार से लेकर स्ट्रीट लाइट्स तक। सुनियेगा ज़रूर।












