एक गणतंत्र में संविधान के ज़रिये सरकार की शक्ति पर रोक लगायी जाती है, पर भारत में हम देखते हैं कि अक्सर होता इससे ठीक उल्टा है। सरकार ही भारतीय नागरिकों पर इतनी रोक लगाती है कि पूछो ही मत। और हम नागरिकों को भी इसकी इतनी आदत पड़ चुकी है कि हम पूछते भी नहीं कि ये नियम हम पर क्यों लगाए जा रहे हैं। प्रणय ने तो बेकार नियमों के इस जाल को सरकार का चंगुल कहा है।
ख़राब सरकारी नियमों से चंगुलतोड़ का मैनिफेस्टो।…
एक गणतंत्र में संविधान के ज़रिये सरकार की शक्ति पर रोक लगायी जाती है, पर भारत में हम देखते हैं कि अक्सर होता इससे ठीक उल्टा है। सरकार ही भारतीय नागरिकों पर इतनी रोक लगाती है कि पूछो ही मत। और हम नागरिकों को भी इसकी इतनी आदत पड़ चुकी है कि हम पूछते भी नहीं कि ये नियम हम पर क्यों लगाए जा रहे हैं। प्रणय ने तो बेकार नियमों के इस जाल को सरकार का चंगुल कहा है।