आवारा कुत्तों की समस्या: दया और दुलार से बढ़कर ज़िम्मेदार पशु प्रेम की ज़रूरत
Stray Crisis: From stray love to responsible pet ownership
दोस्तों, पिछले हफ़्ते दिल्ली-NCR में आवारा कुत्तों की समस्या से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर काफ़ी हंगामा हुआ। कोर्ट का यह आदेश कितना प्रैक्टिकल है, इस पर बहस हो सकती है। यह मानना गलत नहीं होगा कि दिल्ली-NCR की नगर पालिकाओं के पास इतने कर्मचारी और साधन नहीं हैं कि वे 8-12 हफ्तों में करीब 10 लाख आवारा कुत्तों को पकड़ सकें। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि इस समस्या को नज़रअंदाज़ किया जा सकता है। यह मुद्दा बहुत लंबे समय से उबल रहा है और इस पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि बात आम नागरिकों की सुरक्षा की है।

श्वानप्रेमियों का सुप्रीम कोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ प्रदर्शन
दूसरी तरफ़, बहुत सारे तथाकथित "dog-lovers" हैं जो इस आदेश का विरोध कर रहे हैं। उनकी मुख्य दलील यह है कि आवारा कुत्तों की आबादी को Trap, Neuter, Vaccinate, Release (TNR) प्रोग्राम के ज़रिये काबू किया जा सकता है। वे कहते हैं कि यही एक मानवीय (humane) और दयालु रास्ता है। मैं यह पूछना चाहती हूँ... किसके प्रति मानवीय और किस क़ीमत पर दयालु? यह सच है कि आवारा कुत्तों का वैक्सीनेशन और नसबंदी इस समस्या को संभालने का एक ज़रूरीहिस्सा है। लेकिन यह कहना बेईमानी होगी कि सिर्फ इतना ही काफ़ी है। नसबंदी से कुत्तों का आक्रामक व्यवहार पूरी तरह खत्म नहीं होता, ख़ासकर जब वे झुंड में हों।
मैं यह कुछ अनुभव से कह रही हूँ। गुड़गांव में हमारी सोसाइटी में तीन आवारा कुत्तों ने बहुत आतंक मचा रखा था। झुंड का जो आल्फा याने कि सरगना था, वह अपने इलाके को लेकर बहुत आक्रामक था और कई बच्चों पर बिना वजह हमला कर चुका था। मैं उसका रेगुलर निशाना बनती थी क्योंकि मुझे अपने पालतू कुत्ते को उसी इलाके में घुमाना पड़ता था। एक बात ध्यान रखें, ये कुत्ते कोई भूखे या बेसहारा नहीं थे। इन्हें सोसाइटी के "dog-lovers" अच्छा खाना खिलाते थे। इन श्वानप्रेमियों को लगता था कि कुत्तों को खाना खिलाने से उनकी मानवीय ज़िम्मेदारी पूरी हो गई। कुछ पुण्य कमाने की लालच में भी पशुओं को खाना खिलाते थे।
एक दिन, एक बुरे हमले के बाद जिसमें मुझे चोट भी आई, मैंने RWA मैनेजर से शिकायत करने का फैसला किया।
"मैडम, ये सभी कुत्ते vaccinated और neutered हैं। हम इनके बारे में कुछ नहीं कर सकते।", मैनेजर ने अपने हाथ खड़े कर दिए।
"लेकिन सर, ये कुत्ते लोगों पर हमला कर रहे हैं। उस ख़तरनाक वाले ने तो बच्चों को काटा भी है। आप यह जानते हैं।", मैंने अपनी बात रखी।
"मैडम, एक महिला हैं जो animal rights activist हैं। उन्होंने कुत्तों को भगाने की कोशिश करने पर हमारे खिलाफ पुलिस केस कर दिया है। मेरे हाथ इस मामले में बंधे हुए हैं।", मैनेजर ने बताया।
तो इसके चलते हमारी सोसाइटी के निवासियों को आवारा कुत्तों से खुद ही निपटना पड़ता था।
अब, जब कायदा कुछ नहीं कर सकता था, तो हम एक तरह से जंगल-राज में जी रहे थे। जिसकी लाठी उसकी जान ऐसा मामला देखकर मैंने भी अपने पालतू कुत्ते और अपनी सुरक्षा के लिए लाठी उठा ही ली। जंगल में मत्स्यन्याय का नियम चलता है। ताकतवर कमज़ोर को खा जाता है, और मैं खाये जाने के लिए तैयार नहीं थी।
मैंने सीज़र मिलान (एक फेमस डॉग ट्रेनर) को सालों तक देखकर जो भी ज्ञान हासिल किया था, सब लगा दिया। मुझे यह साफ़ बताना था कि इस जंगल की बॉस मैं हूँ। मैं कंधे चौड़े करके, एक हाथ में कुत्ते का पट्टा और दूसरे में डंडा लेकर चलती थी, तब जाके वो आतंकी कुत्ते कुछ काबू में रहते थे।
मैंने जैसे तैसे मामले को संभाल लिया था, लेकिन यह बात मुझे बहुत खटकती थी की एक बड़े शहर की आलिशान सोसाइटी में भी लोगों को कुत्तों से डर कर चलना पड़ रहा था, शहर के गरीब इलाकों में क्या होता होगा ये तो सोचिये भी मत। सोसाइटी के अंदर एक झुंड था, सोसाइटी के बाहर दूसरा झुंड था। पहले तो रस्ते पे आदमियों का डर कुछ कम नहीं, उसमें कुत्तों से भी डरें।
किसी दूसरे देश में, अगर कोई कुत्ता लोगों पर हमला करता और काटता हैं, तो उसे euthanize कर दिया जाता है। यह अमानवीय नहीं है, यह सिर्फ कॉमन सेंस है।
लेकिन ज़रा हमारे Animal Birth Control (ABC) Rules, 2023 को देखिए। एक बार कुत्ते की नसबंदी और टीकाकरण हो जाने के बाद, उसे उसी इलाके में वापस छोड़ना पड़ता है। नगर पालिका न तो उसे कहीं और भेज सकती है और न ही किसी ऐसे कुत्ते को मार सकती है जो बहुत ज्यादा बीमार या घायल न हो।
आप पूछ सकते हैं, "तो आक्रामक कुत्तों का क्या?" अच्छा सवाल है।
इसके जवाब में सभी "dog-lovers" एक ही लाइन दोहराएंगे। Vaccinate और sterilise करो। लेकिन एक शब्द भी इस पर नहीं बोलेंगे कि अगर कोई कुत्ता लोगों पर हमला कर रहा है तो क्या किया जाना चाहिए। मैं कुत्तों को दोष नहीं दे रही। कुत्ते तो पशु हैं, वे अपनी सहज प्रवृत्ति पर काम करेंगे। लेकिन कुत्तों के हमलों को नज़रअंदाज़ करने और कहीं भी खाना खिलाने के इस बेतुके रवैये ने अच्छे खासे TNR प्रोग्राम को फेल कर दिया है और कुत्तों के ख़िलाफ़ लोगों में गुस्सा भर दिया है।
ये पढ़िए। एक एनिमल वेलफेयर संस्था इस कानून के बारे में कैसे जागरूकता फैला रही है।
“Street Dogs CANNOT be relocated or killed, they can ONLY be neutered and vaccinated by BBMP and returned to the same locality - but with the telltale ear notch to confirm neutered. This is non-negotiable, it’s the law and we need to know that. If you are a resident who feels that the street dogs infringe on your space, chase or even bite, we can empathise but must underline the above law. The only choice is to work closer with BBMP, your local area squad or NGO to ensure all your community dogs are vaccinated and neutered - for your OWN safety.
As a feeder, your rights are protected, provided you are responsible in picking feed time & place and also neuter /vaccinate the dogs with help of municipal corporations.”
स्त्रोत: ABC Rules 2023 - How does it affect my streeties & me?
कुत्तों को खिलाने वालों के अधिकार रस्ते पर चलने वाले लोगों की सुरक्षा से बढ़कर हैं। भाई वाह।
ज़्यादातर animal welfare groups का यही रवैया है। (कुछ पशु प्रेमी सच में बहुत अच्छा काम करते हैं और ऐसी संस्थाओं को भी मैंने देखा है। वे पशु बचाव के साथ pet adoption पर भी काम करते हैं। ) इन स्वार्थी कानूनों के साथ आप आवारा कुत्तों की बढ़ती आबादी को कभी नहीं सुलझा सकते। मैं उन्हें मानवीय या दयालु नहीं कहूँगी, क्योंकि इन कानूनों से ऐसा लगता है कि आप अपने पसंदीदा आवारा कुत्ते को अपने इलाके में रखने का हक जता रहे हैं, लेकिन उसके व्यवहार की असली जिम्मेदारी लेने की मेहनत नहीं करना चाहते, और ना ही आप उन लोगों की परवाह करते हैं जिन्हें इस पॉलिसी की कीमत चुकानी पड़ती है।
इन तथाकथित मानवीय कानूनों की क़ीमत कौन चुकाता है?
नगर पालिका के कर्मचारी, जिनको इन कुत्तों का टीकाकरण, नसबंदी या मॉनिटरिंग का मुश्किल और ख़तरनाक काम करना पड़ता है। मैंने नगरपालिका कर्मचारियों को कुत्तों को इतनी बेकाबू हालत में लाते देखा है कि पशु चिकित्सक भी अपने स्टाफ की सुरक्षा का हवाला देकर उन्हें लेने से मना कर देते हैं। कर्मचारियों के पास अपनी सुरक्षा के लिए कोई साधन भी नहीं होते। किसी को भी अपने काम पर इस तरह के ख़तरे का सामना नहीं करना पड़ना चाहिए। न नगरपालिका कर्मचारियों को, न ही पशु चिकित्सकों को।
आम लोग जिन पर हमले होते हैं, जैसे छोटे बच्चे, रात की शिफ्ट में काम करने वाले, पैदल चलने वाले और साइकिल चलाने वाले। मूल रूप से, हर वह व्यक्ति जो शारीरिक रूप से कमजोर है और जिसे कार की सुरक्षा के बिना बाहर सफ़र करना पड़ता है।
दूसरे देशों में आवारा कुत्तों की संख्या को कैसे काबू किया जाता है?
उन्हें शेल्टर में रखकर। अब, यह एक euphemism है। दुनिया के किसी भी देश में लाखों आवारा कुत्तों के लिए शेल्टर नहीं हैं। यह बात व्यावहारिक ही नहीं है। सबसे विकसित देशों में भी शेल्टर में सीमित जगह होती है। कहीं कहीं TNR प्रोग्राम भी इस्तेमाल होते हैं, लेकिन आक्रामक कुत्तों को वापस नहीं छोड़ा जाता। जब कोई कुत्ता शेल्टर में आता है, तो उसके लिए घर खोजने की कोशिश की जाती है, लेकिन यह सभी के लिए संभव नहीं हो पाता। हर कुत्ते के लिए शेल्टर में एक सीमित समय होता है। अगर तब तक उसे कोई गोद नहीं लेता, तो उसे euthanize करना पड़ता है। आवारा कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करने की यही हकीकत है।
भारत में एनिमल बर्थ कंट्रोल नियम, 2001 के बाद से यह समस्या और भी गंभीर हो गई है, क्योंकि इसके तहत नगरपालिकाओं के लिए किसी भी कुत्ते को मारना ग़ैरक़ानूनी बना दिया गया है, चाहे वह आक्रामक ही क्यों न हो। पशु अधिकार समुदाय कुत्तों को खाना खिलाने का बचाव करता रहा और कुत्तों के हमलों को नज़रअंदाज़ करता रहा। उनका तर्क कि अगर मौजूदा कुत्तों को उठा लिया गया तो नए कुत्ते उस जगह पर कब्ज़ा कर लेंगे, सही नहीं है। कुत्ते वहीं इक्कट्ठा होते हैं जहाँ खाने का स्रोत होता है, और वह स्रोत आमतौर पर दिल्ली-एनसीआर जैसे अत्यधिक शहरी इलाकों में इंसान ही होते हैं।
प्यार के साथ ज़िम्मेदारी भी आती है
आवारा जानवरों के प्रति हमारे समाज के रवैये में एक दोगलापन है। हम में से बहुत से लोग आवारा गायों, बिल्लियों और कुत्तों को खाना खिलाना पसंद करते हैं, लेकिन अगर जानवर बीमार पड़ जाए तो ज़्यादातर लोग पैसे खर्च करने से कतराते हैं। और भी कम लोग आवारा जानवर की देखभाल खुद करने के लिए तैयार होंगे।
Pet owners भी अक्सर अपने पालतू जानवरों को छोड़ देते हैं जब उनकी देखभाल करना मुश्किल हो जाये। हमारा पालतू कुत्ता ऐसे ही दो घरों से ठुकराया गया था। उसमें कोई खोट नहीं थी, खोट उन इन्सानों में थी, जो क्यूट पिल्लू को खरीदते हैं और बड़ा होते ही उसे ठुकरा देते हैं। भारत में पालतू जानवरों की नसबंदी कराना भी आम बात नहीं है। ये सभी चीजें आवारा जानवरों की आबादी को बढ़ाती हैं।


इसका जवाब बहुत सीधा है। हमें धीरे-धीरे सिर्फ़ आवारा जानवरों से प्यार करने की सोच से आगे बढ़कर responsible pet ownership की तरफ़ बढ़ना चाहिए। अगर आप अपने प्यारे शेरू को शेल्टर जाते नहीं देखना चाहते तो उसे अपने घर में रखिये। अगर ऐसा संभव न हो तो शेरू की नसबंदी और टीकाकरण में मदद कीजिये और फिर उसके लिए एक अच्छा परिवार ढूंढिए जो उसे गोद लेने को तैयार हो। आक्रामक कुत्तों के बारे में लोगों की शिकायतों को सुनिए, और ऐसे कुत्तों को सुरक्षित रूप से पकड़कर उन्हें शेल्टर भेजिए या फिर उनके पुनर्वास का खुद कुछ बंदोबस्त कीजिये।
हमारी नगर पालिकाओं के पास इतना पैसा तो नहीं है कि ये सब काम झट से हो जायेंगे। पर जो कुत्ते आक्रामक हैं और बड़े झुंड में हैं, कम से कम उनको तो शेल्टर भेजा जाये। क़ानून में भी बदलाव लाये कि आक्रामक कुत्तों को वापिस छोड़ नहीं सकते।
पशु प्रेमियों के लिए बहुत काम है। Responsible pet ownership के बारे में जागरूकता लाएं। पालतू जानवर खरीदने के बजाय उन्हें गोद लेने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करें। सरकार पालतू जानवरों की नसबंदी और microchip tracking को अनिवार्य बनाएं ताकि खोए हुए पालतू जानवरों को उनके मालिकों तक पहुंचाया जा सके (और लोग अपने पालतू जानवर को ऐसे ही रस्ते पर न छोड़ दें) । सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि लोगों को यह समझना चाहिए कि किसी जानवर से प्यार करने के साथ बहुत सारी ज़िम्मेदारी भी आती है। अपने प्यार की क़ीमत समाज पर डालना बंद करें।
जंगली प्रजातियों पर प्रभाव
आवारा कुत्ते सिर्फ दिल्ली में ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में एक समस्या हैं। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे आवारा कुत्ते अब पहले से ही लुप्तप्राय भारतीय भेड़िये के लिए खतरा बन रहे हैं।
मैंने 2018 में गुड़गांव के अरावली बायोडायवर्सिटी पार्क में एक वालंटियर से ऐसा ही एक मामला सुना था।
"जो लोग यहाँ सैर पर आते हैं, वे अपने साथ ब्रेड और चपाती लेकर आते हैं और यहाँ कुत्तों को खिलाते हैं। इससे पार्क में और भी कुत्ते आकर्षित होते हैं, जो बदले में पार्क में पक्षियों के घोंसलों और अन्य वन्य जीवों को नष्ट कर देते हैं।"
लोगों को यह जानना चाहिए कि जानवरों को यूँ ही कहीं भी खाना खिलाना पूरी तरह से हानिरहित काम नहीं है।
ऐसे मामलों में, हर किसी को सोचना चाहिए। "क्या मैं सच में humane (मानवीय) काम कर रहा हूँ? मानवीय किसके लिए और किस क़ीमतपर?"
—ख्याति
We welcome articles/blogs/experiences from our readers and listeners. If you are interested in getting your writing featured on Puliyabaazi, please send us your submissions at puliyabaazi@gmail.com. Check out this article for submission guidelines.
The Dominance of War-Elephants in India. हाथियों का युद्ध में इस्तेमाल।
नमस्ते, पुलियाबाज़ी में आज हम एक हटके विषय पर चर्चा करेंगे—युद्ध में हाथियों का प्रयोग। यह विषय हमें काफी इंटरेस्टिंग लगा, तो हमने सोचा कि क्यों न इस पर आदित्य रामनाथन से बात की जाए। आदित्य तक्षशिला इंस्टीटूशन के साथ एसोसिएट फैलो हैं और मिलिटरी हिस्ट्री में गहरी दिलचस्पी रखते हैं। इस पुलियाबाज़ी पर चर्चा इतिहास के उस दौर की जब भारत एक ‘आर्म्स एक्सपोर्टर’ …
सुपर कीटाणुओं का कैसे करें मुकाबला? Understanding Superbugs and Antibiotic Resistance ft. Anirban Mahapatra
एंटीबायोटिक की खोज मानव जाति के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण था। इससे इंसानों का जीवनकाल बढ़ा और स्वास्थ्य सेवा में क्रांतिकारी बदलाव आया क्योंकि लोग अब मामूली चोटों और संक्रमणों के कारण नहीं मर रहे थे। लेकिन अब एक नया खतरा मंडरा रहा है - सुपरबग बैक्टीरिया अब तक खोजे गए एंटीबायोटिक्स के प्रति तेजी से प्रतिरोधी होते जा रहे हैं। एंटीबायोटिक प्रतिरोध को तेजी से …
अश्वशास्त्र. The Story of the Horse in India.
The horse has been so central to human civilisation that the history of this majestic animal alone reveals a lot about our own past. So in this episode, Yashaswini Chandra, author of the new book The Tale of the Horse: A History of India on Horseback