Guest Post by Anupam Manur. Originally Published in Times of India, Dec 10, 2024. Translation by Khyati Pathak.
भारत और बांग्लादेश के बीच काफी तीखी कूटनीतिक तनातनी के बीच, बीएनपी के एक वरिष्ठ नेता ने बांग्लादेशियों से सभी भारतीय उत्पादों का बहिष्कार करने और इसके बजाय केवल 'राष्ट्रीय' उत्पादों को खरीदने और उपयोग करने का आह्वान किया है। प्रतीकात्मक रूप में, उन्होंने अपनी पत्नी की एक मेड इन इंडिया साड़ी को जलाया। संभवतः इससे भारत और उनकी पत्नी दोनों के साथ संबंध खराब हो गए हैं।
यह अजीब तरह से भारतीय प्लेबुक का ही एक पन्ना लगता है। यह मुझे एक लोकप्रिय कन्नड़ मुहावरे ‘सूर्यंगे टॉर्च आ?’ और उतने ही मज़ेदार ‘लक्ष्मीगे ब्लैंक चेक आ?’ की याद दिलाता है जिसका मोटे तौर पर अनुवाद 'सूर्य को टॉर्च दिखाना' और 'धन की देवी लक्ष्मी को ब्लैंक चेक देने की हिम्मत करना' है। हम भारतीय थोड़ी सी भी लापरवाही या कभी बड़े गंभीर उल्लंघन पर प्रतिक्रिया के रूप में नाराज़ होने और वस्तुओं और सेवाओं का बहिष्कार करने में माहिर हैं।
सामान, फिल्मों, किताबों, व्यक्तियों और समुदायों के बहिष्कार का आह्वान X पर सबसे लोकप्रिय भारतीय हैशटैग प्रतीत होता है, जिसमें बांग्लादेशी उत्पादों के बहिष्कार का वर्तमान जवाबी आह्वान भी शामिल है। विदेशी आक्रमण के खिलाफ बहिष्कार हमारी पहली रक्षा पंक्ति प्रतीत होता है। कुल चीनी निर्यात में भारत का हिस्सा मात्र 3% होने के बावजूद भी हमने छोटे-मोटे उत्पादों का बहिष्कार करके सीमा उल्लंघन के लिए चीन को सबक सिखाने की कोशिश की है। चीनी बनावट के मोबाइल फोन पर लिखे गए हमारे सोशल मीडिया युद्ध के नारे की तो बात छोड़ ही दीजिये।
इसी तरह, धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए हम अक्सर फिल्मों, स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म और यहाँ तक कि पूरे बॉलीवुड फिल्म उद्योग का बहिष्कार करते हैं। फ़िल्मी अभिनेताओं के कपड़े या बातों से लेकर कंपनियों का अंतर्धार्मिक विवाहों को बढ़ावा देने वाले विज्ञापन चलाने जैसी वजहों से हमें बहिष्कार बटन दबाने में देर नहीं लगती। क्या हमें चिंता नहीं है कि इस दर पर हमारे पास विकल्प के मामले में बहुत कुछ नहीं बचेगा? हमारे कई बहिष्कार आंदोलन स्वदेशी आंदोलन से प्रेरणा लेते हैं जब शायद आखिरी बार ऐसा बहिष्कार काम आया था।
ऐसा लगता है मानो ये एक ग्लोबल 'पे इट फॉरवर्ड' योजना है। बांग्लादेश भारतीय उत्पादों का बहिष्कार करता है, भारत चीनी वस्तुओं का बहिष्कार करता है, चीन ने खुद जापानी वस्तुओं का बहिष्कार किया है, अमेरिकियों ने चीनी और जापानी दोनों उत्पादों का बहिष्कार किया है, और लगभग सभी देशों ने अमेरिकी उत्पादों का बहिष्कार करने की कोशिश की है और असफल रहे हैं। इन सब में एक मात्र समानता यह है कि ये सभी आंदोलन अपने उद्देश्यों को पाने में विफल रहे हैं, सिवाय आत्मसंतुष्टी की एक छोटी सी भावना के। बहिष्कार बटन की अप्रभाविता को देखते हुए क्या हम अंततः यह कह सकते हैं कि गंभीर मुद्दों पर बेहतर प्रतिक्रियाएँ विकसित करने और बहिष्कार को अपने पहले रिएक्शन के रूप में बहिष्कार करने का समय आ गया है?
-अनुपम मनूर
Anupam Manur teaches economic reasoning and macroeconomics at the Takshashila Institution. He has published several editorials in the Mint, Financial Express, The Hindu, NDTV, Scroll, Deccan Herald, Bloomberg Quint, AsiaGlobal Online and others. He has edited three books published by the Takshashila Institution Press, and is the co-author of ‘We, the Citizens’, an illustrated guide to public policy concepts.
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