— प्रणय कोटस्थाने और परीक्षित सूर्यवंशी
70 एमएम की स्क्रीन राजनीतिक संदेश देने का एक ज़बरदस्त माध्यम है। 1957 की पाकिस्तानी उर्दू फिल्म बेदारी (अर्थ: जागृति/ज्ञानोदय) इसका एक बढ़िया उदाहरण है। यह पाकिस्तान की एक देशभक्तिपूर्ण फिल्म है। बॉलीवुड की भाषा में कहें तो, यह फिल्म 1954 में बनी भारतीय हिंदी फिल्म ‘जागृति’ से काफ़ी प्रेरित थी। दिलचस्प बात यह कि, दोनों ही फिल्मों में मुख्य भूमिका नज़ीर रिज़वी (जो अपने फिल्मी नाम रतन कुमार से ज्यादा जाने जाते थे) ने निभाई थी। नज़ीर 1950 के दशक में पाकिस्तान चले गए और वहाँ उन्होंने की कई लॉलीवुड फिल्मों में अभिनय किया।
इस फिल्म का सबसे रोचक पहलू है इसके चार गाने – जो हूबहू मूल हिंदी फिल्म ‘जागृति’ के गीतों की नकल हैं। धुन भी वही, हीरो भी वही, लेकिन राजनीतिक संदेश बिलकुल अलग। आप ख़ुद सुनिए इन गानों को।
उससे पहले एक ज़रूरी चेतावनी: ये गाने किसी सार्वजनिक जगह पर मत बजाइयेगा वरना लेने के देने पड़ जाएँगे। ज़्यादा सीरियस भी ना हों, सिर्फ़ मज़ा लेने के लिए सुनें। इस फिल्म और गीतों का विवरण सिर्फ पाकिस्तान के आरंभिक काल का एक दिलचस्प पहलू दर्शाने के लिए दिया गया है।
1. आओ बच्चों सैर कराएँ तुमको पाकिस्तान की
यह गाना 'जागृति' के मशहूर गीत "आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ झांकी हिंदुस्तान की" की धुन पर बना है। मूल हिंदी गीत की तरह ही इस गीत में भी, एक शिक्षक अपने कुछ छात्रों को पाकिस्तान के अलग-अलग हिस्सों की यात्रा कराते हुए और प्रत्येक प्रांत की प्रशंसा में कुछ पंक्तियाँ गाते हुए दिखाएँ गए हैं।
सिंध को उस भूमि के रूप में दिखाया गया है जहाँ राजा दाहिर (सिंध के अंतिम हिंदू शासक) के कथित ‘अत्याचारों’ का अंत मुहम्मद बिन कासिम की सेना द्वारा किया गया! पंजाब तो वह जगह बताई गई है जहाँ इकबाल की कविता से इतनी जागरूकता आई कि यहाँ के बहादुर सैनिक राष्ट्र के लिए प्राण देने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत (NWFP) को पठानों की भूमि कहा गया है, और क्या कहें यहाँ के बड़े ही नहीं बच्चे भी युद्ध कला में पारंगत हैं (“बन्दूकों की छाँव में बच्चे होते हैं जवान यहाँ”)। याने कि सब स्टीरियोटाइप एक ही गाने में।
मज़े की बात यह है कि इस गीत में कश्मीर का ज़िक्र है पर बलूच लोगों का नहीं1। और एक मज़े की बात यह भी है कि, इस फ़िल्म के रिलीज़ होने के कुछ महीनों पहले ही सभी प्रांतों को "One Unit” में विलीन कर दिया गया था। १९५५ से लेकर १९७० तक पाकिस्तान के सिर्फ़ दो ही प्रान्त थे - पश्चिम पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान।
2. ऐ क़ायद-ए-आज़म…
यह गीत गांधीजी के अहिंसक आंदोलन की प्रशंसा में बने लोकप्रिय गीत ‘दे दी हमें आज़ादी बिना खड़ग बिना ढाल’ की धुन पर बनाया गया है। लेकिन बेदारी में इसके मायने पूरी तरह उलटे कर दिए गए हैं। यहाँ यह गीत मुहम्मद अली जिन्ना की प्रशंसा करता है और गांधीजी को दुश्मन के रूप में दिखाता है, जो पाकिस्तान के निर्माण की राह में बाधा डालने की कोशिश कर रहे थे। और एक खास फर्क यह भी है कि, जागृति के गीत तो ‘फिरंगियों’ के ख़िलाफ़ थे, लेकिन ये गाना भारत के विरोध में दर्शाया गया है।
यह गीत मूल 'जागृति' फिल्म के इसी पंक्ति के गीत की नकल है।जागृति के गीत में एक पंक्ति है “एटम बमों के ज़ोर पर ऐठी है ये दुनिया, बारूद के एक ढेर पर बैठी है ये दुनिया” जो उस वक्त का सामाजिक डर दर्शा रही है। लेकिन बेदारी वाले गाने में ऐसी कोई पंक्ति नहीं है। बल्कि इस गाने में बच्चों को ये सिखाया जा रहा है कि, पाकिस्तान तब तक अधूरा है जब तक उसका झंडा कश्मीर में नहीं फहराया जाता!
स्टीफ़न टैंकल, जो एक जाने-माने पाकिस्तान विश्लेषक, लिखते हैं कि पाकिस्तान एक राष्ट्र (state) पहले बना और एक क़ौम (nation) बाद में। ये फ़िल्म तब आई जब पाकिस्तान अपने nationalism की खोज में था। और ये गाने बताते हैं कि इस nationalism का निर्माण जिन्ना की पर्सनालिटी और भारत से नफ़रत के ज़रिए हुआ।
वैसे बलूचिस्तान प्रांत का गठन १९७० में हुआ था।