पश्चिम एशिया में तनाव: कब, क्यों और कैसे?
In this Edition: a Book Review and a Love Letter to Hindi
Dear Reader,
We have two sections in today’s newletter. Both are contributions from our listeners. First section is a book review by Taha where he gives a crisp overview of the book West Asia at War by Talmiz Ahmad. The second section is a healtfelt letter by Sandipan on his connection with Hindi.
We thank both of them for sharing their ideas with us and making the time and effort to write in Hindi. Both articles are written in simple Hindi. This is a part of our effort to ensure that discussions on new ideas are not limited only to English language. हम आशा करते हैं कि आपको ये लेख पसंद आएंगे।
पुस्तक समीक्षा: तलमीज़ अहमद लिखित West Asia at War
A Book Review by Mohammad Taha Ali
तलमीज़ अहमद की किताब West Asia at War पश्चिम एशिया के ऐतिहासिक, धार्मिक, राजनीतिक और भू-राजनीतिक संघर्षों का एक आसान और गहरा विश्लेषण पेश करती है। लेखक ने सरल शब्दों में समझाने की कोशिश की है कि इस क्षेत्र में लंबे समय से चल रही अस्थिरता और संघर्षों के पीछे सिर्फ आंतरिक समस्याएं नहीं, बल्कि बाहरी ताकतों की दखल भी बड़ी वजह है।
यह किताब हमें पश्चिम एशिया के इतिहास की शुरुआत से लेकर आज की स्थिति तक का ब्यौरा देती है। सायक्स-पिको समझौता (Sykes-Picot Agreement) और बाल्फोर घोषणा (Balfour Declaration) जैसी घटनाओं को क्षेत्र की मौजूदा समस्याओं की जड़ बताया गया है।
औपनिवेशिक प्रभाव The impact of Colonialism
प्रथम विश्व युद्ध के बाद पश्चिमी देशों ने इस क्षेत्र की कृत्रिम सीमाएं खींची।
इन सीमाओं ने क्षेत्रीय पहचान और राजनीतिक एकता को कमजोर कर दिया।
क्षेत्रीय संसाधनों का दोहन और राजनीतिक अस्थिरता इसी की वजह से बढ़ी
धार्मिक विभाजन और संघर्ष
यह किताब धार्मिक विभाजन पर भी खास ध्यान देती है, जो पश्चिम एशिया के संघर्षों की मुख्य वजहों में से एक है। लेखक ने शिया और सुन्नी समुदायों के बीच बढ़ते मतभेदों को न केवल ऐतिहासिक रूप से समझाया है, बल्कि यह भी बताया है कि यह कैसे राजनीतिक और सामाजिक तनाव का कारण बना।
ईरान और सऊदी अरब के संबंध:
ईरान और सऊदी अरब के बीच के तनाव को लेखक ने "प्रॉक्सी युद्ध" के रूप में परिभाषित किया है।
यमन, सीरिया और इराक जैसे देशों में हो रहे संघर्ष इन दो ताकतों के बीच प्रभुत्व की लड़ाई से जुड़े हैं।
बाहरी ताकतों का दखल और तेल की राजनीति
पुस्तक का बाहरी देशों की दखल और तेल की राजनीति पर भी ध्यान खींचती है। पश्चिम एशिया के विशाल ऊर्जा संसाधन इसे वैश्विक शक्तियों के लिए आकर्षण का केंद्र बनाते हैं।
अमेरिका की "पेट्रो डॉलर" नीति और इराक-अफगानिस्तान में दखल।
रूस की सामरिक रणनीतियां, खासकर सीरिया में।
चीन की "बेल्ट एंड रोड" पहल और क्षेत्र में उसकी बढ़ती मौजूदगी।
धार्मिक मतभेदों का बाहरी शक्तियों द्वारा राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग। क्षेत्रीय संघर्षों को बढ़ावा देने में इन मतभेदों की भूमिका।
पुस्तक का एक महत्वपूर्ण हिस्सा पश्चिम एशिया के ऊर्जा संसाधनों और बाहरी शक्तियों के हस्तक्षेप पर केंद्रित है।
आतंकवाद और क्षेत्रीय अस्थिरता
लेखक ने अल-कायदा और ISIS जैसे संगठनों के उदय को भी विस्तार से समझाया है। यह बताया गया है कि ये संगठन केवल धार्मिक कट्टरता के कारण नहीं बने, बल्कि क्षेत्रीय राजनीति और शक्ति-संघर्ष ने भी इन्हें जन्म दिया। इनका असर न केवल पश्चिम एशिया पर, बल्कि पूरी दुनिया की सुरक्षा पर भी पड़ा है।
भारत की भूमिका
पुस्तक में भारत की पश्चिम एशिया में भूमिका को भी समझाया गया है।
भारत के हित:
ऊर्जा आपूर्ति के लिए भारत इस क्षेत्र पर निर्भर है।
लाखों भारतीय कामगार इस क्षेत्र में रहते हैं।
लेखक ने सुझाव दिया है कि भारत को इस क्षेत्र में अपनी कूटनीतिक भूमिका बढ़ानी चाहिए।
समग्रता में पुस्तक का महत्व
तलमीज़ अहमद की यह किताब पश्चिम एशिया के जटिल इतिहास और आज के हालात को सरल तरीके से समझाती है।
उनकी भाषा में एक राजनयिक की परिपक्वता और एक लेखक की गहराई है।
यह किताब शोधकर्ताओं, नीति निर्माताओं और हर उस व्यक्ति के लिए उपयोगी है, जो पश्चिम एशिया के संघर्ष और उनके असर को समझना चाहता है।
किताब से एक प्रमुख विचार:
"पश्चिम एशिया में स्थिरता सिर्फ इस क्षेत्र के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए जरूरी है।"
आप इसे जरूर पढ़ें। यह किताब आपकी सोच को एक नई दिशा देगी।
-Taha
Taha is a 2nd-year Master’s student at the Nelson Mandela Centre for Conflict Resolution, Jamia Millia Islamia. His research interests include nuclear issues, peacebuilding, sustainability, and political mobilization, particularly in South Asia. Follow Taha here
हिंदी से प्यार
A Love Letter to Hindi by Sandipan Mitra
नमस्कार,
इस ब्लॉग में मैं ४-5 बातें बताना चाहूंगा जिसके कारण मुझे हिंदी में बात करना पसंद ह। ये वही कुछ कारण हैं जिसकी वजह से आप पुलियाबाज़ी पॉडकास्ट करते हैं। उम्मीद है कि आपके कुछ श्रोता/पाठक भी इनसे खुद को जोड़ पाएंगे।
मेरी मातृभाषा बंगाली है और मेरे कई करीबी रिश्तेदार "हिंदी imposition " से परेशान हैं एवं नफरत करते हैं। पर मुझे हिंदी बेहद पसंद है। मेरा जन्म नागपुर में हुआ है और हिंदी और बंगाली ही पहली भाषा है। घर के बाहर हिंदी और घर में बंगाली, इसी तरह मैं बड़ा हुआ हूँ। मैं अभी भी हिंदी में ही सबसे पहले सोचता हूँ।
चलिए अब उन कारणों पर आते है जिसके कारण मुझे अभी भी हिंदी से बेहद लगाव है।
१) मेरे पापा बिहार में पले बढे हैं। उनकी हिंदी बहुत ही अच्छी है। बचपन से मुझे गणित या विज्ञान में माता-पिता से सीखने की ज़रुरत महसूस नहीं हुई, कभी स्कूल के शिक्षक, कभी ट्यूशन टीचर ने वह ज़िम्मा लिया हुआ था, पर हिंदी में दोहे और तुलसीदास के काव्य मुझे कभी समझ नहीं आये, और मेरे पापा ने मुझे हमेशा समझाया। पापा से पढ़ने का हिंदी एकमात्र मौका था।
२) हिंदी सिनेमा जितना मज़ा मुझे और किसी सिनेमा में नहीं आया। हिंदी सिनेमा जैसे मुझे समझता है। मुझे हिंदी सिनेमा का "आँख में ऊँगली डालकर समझाना, कोई subtlety की गुंजाइश ही न रखना" बहुत पसंद है। हिंदी फिल्मवाले जादूई तरीके से समझ जाते हैं कब कुछ ज़्यादा हो रहा है और ऐन वक़्त पे गाने आ जाते हैं। यह बंगाली या अंग्रेजी सिनेमा वाले नहीं समझते।
३) मेरा सात साल का एक बेटा है। उसे इंग्लिश और बंगाली आती है। उसके सामने अगर मुझे उसके बारे में ही कुछ बात करनी है तो हिंदी ही एकमात्र ज़रिया है। ज़्यादातर यह discussions बहुत मज़ेदार होते हैं। बेटे को कोई भी लड़की पसंद आती है तो मैं और मेरी बीवी discuss करते हैं कि यह हमारी बहु बनेगी तो कैसा रहेगा, अगर लड़कीवाले शाकाहारी है तो कितनी परेशानी होगी, मेरी बीवी कौनसे गहने बहु को देगी और कौनसे बेटी के लिए रखेगी। हा हा।
४) हिंदी वाकई भारतीय उपमहादेश को जोड़ने वाली भाषा है। मैं सौरभ की भाषा में "रोबोटिक्स के मेक्का" बोस्टन में रहता हूँ। मेरे वह दक्षिण भारतीय दोस्त जो बचपन में शायद कभी हिंदी नहीं बोले, वह भी खुद को जब भी "भारतीय" बोलके अलग करना चाहते है तो हिंदी का ही प्रयोग करते हो चाहे वह कितनी टूटी फूटी ही क्यों न हो, वह नहीं डरते। बहुत बार तो नहीं पर काफी बार पाकिस्तानी लोगों से मुलाक़ात हो जाती है। हम लोग तोह एक ही जैसे दिखते भी हैं, तो ज़ाहिर है की कहीं अगर और देश के लोग हो और हम हो, तो उनसे ही पहले बात होती है। और वह हिंदी में ही होती है, हालाँकि वह उर्दू बोलते हैं और मैं हिंदी, पर दिव्य प्रकाश ने बोल ही दिया है की दोनों एक है।
५) पुलियाबाज़ी पॉडकास्ट: पुलियाबाज़ी सुनके बहुत आनंद आता है। आप लोग जो कारण बताते है पुलियाबाज़ी करने का, की अपनी भाषा में पुलियाबाज़ी करने का मज़ा अलग ही है, छु जाता है। आप लोगों ने कभी यह हिंदी भाषा प्रचार की दृष्टि से किया ही नहीं। सौरभ और प्रणय पहले से ही बहुत engaging थे पर ख़्याति के आने से पॉडकास्ट और भी rich हो गया है। आजकल हिंदी का exposure बहुत ही कम हो गया है। ऑफिस में अंग्रेजी, घर पे बंगाली, हिंदी से नाता सिर्फ इस पॉडकास्ट के माध्यम से ही जुड़ा हुआ है।
धन्यवाद,
संदीपन मित्रा
Sandipan is a Nagpur born and raised Bengali Electrical Engineer, who now resides in Boston suburbs.
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