किस्मत से बाज़ी
Pandit Jawaharlal Nehru’s original speech in Hindustani on 14 August 1947
जवाहरलाल नेहरू का प्रसिद्ध ‘ट्रिस्ट विथ डेस्टिनी’ भाषण तो आपने सुना ही होगा। इस भाषण का अंग्रेज़ी वर्ज़न तो बहुत प्रसिद्ध है लेकिन क्या आप जानते हैं कि दरअसल पंडित नेहरू ने संविधान सभा में यह भाषण अंग्रेज़ी से पहले हिंदुस्तानी में दिया था? जी हाँ! लेकिन दुख की बात है कि बहुत कम लोगों ने इसे हिंदुस्तानी में सुना या पढ़ा होगा। और तो और कई लोगों ने तो इसका अनुवाद भी कर डाला।
तो हमने सोचा कि 79वे स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य पर इस भाषण का हिंदुस्तानी वर्ज़न पढ़ते हैं वो भी खुद भारत के OG प्रथम सेवक द्वारा लिखा हुआ। आप भी पढ़िए और अपने दोस्तों से भी शेयर कीजिए। जय हिंद।
14 अगस्त 1947,
भारत की संविधान सभा को संबोधित करते हुए।
पंडित जवाहरलाल नेहरू:
साहब सदर, कई वर्ष हुए कि हमने किस्मत से एक बाज़ी लगाई थी। एक इकरार किया था, प्रतिज्ञा की थी। अब वक्त आया कि हम इसे पूरा करें। बल्कि वह पूरा तो शायद अभी भी नहीं हुआ, लेकिन फिर भी एक बड़ी मंजिल पूरी हुई। हम वहाँ पहुंचे हैं। मुनासिब है कि ऐसे वक्त में पहला काम हमारा यह हो कि हम एक प्रण और एक नई प्रतिज्ञा फिर से करें। इकरार करें, आइंदा हिंदुस्तान और हिंदुस्तान के लोगों की खिदमत करने का। चंद मिनटों में यह असेम्बली एक पूरी तौर से आज़ाद ख़ुदमुख़्तार असेम्बली हो जायेगी और यह असेम्बली नुमाइंदगी करेगी एक आज़ाद ख़ुदमुख़्तार मुल्क की। चुनाचे, इसके ऊपर ज़बरदस्त ज़िम्मेदारियाँ आती हैं और अगर हम इन ज़िम्मेदारियों को पूरी तौर से महसूस न करें तब शायद हम अपना काम पूरी तौर से न कर सकेंगे। इसलिये यह ज़रूरी हो जाता है कि इस मौके पर पूरी तौर से सोच समझ कर इसका इकरार करें।
जो रिजोल्यूशन, प्रस्ताव, मैं आपके सामने पेश कर रहा हूँ वह इसी इकरार, इसी प्रतिज्ञा का है। हमने एक मंजिल पूरी की और आज उसकी ख़ुशियाँ मनाई जा रही हैं। हमारे दिल में भी ख़ुशी है और किस कदर गुरूर है और इत्मीनान है लेकिन यह भी हम जानते हैं कि हिंदुस्तान भर में खुशी नहीं है। हमारे दिल में रंज के टुकड़े काफ़ी हैं और दिल्ली से बहुत दूर नहीं—बड़े-बड़े शहर जल रहे हैं। वहाँ की गर्मी यहाँ आ रही है। खुशी पूरे तौर से नहीं हो सकती, लेकिन फिर भी हमें इस मौके पर हिम्मत से इन सब बातों का सामना करना है। न हाय-हाय करना है न परेशान होना है। जब हमारे हाथ में बागडोर आयी तो फिर ठीक तरह से गाड़ी को चलाना है। आमतौर से अगर मुल्क आज़ाद होते हैं, काफ़ी परेशानियों, मुसीबतों और ख़ूँरेज़ी के बाद होते हैं। काफ़ी ऐसी ख़ूँरेज़ी हमारे मुल्क में भी हुई है और ऐसे ढंग से हुई जो बहुत ही तकलीफदेह हुई है। फिर भी हम आज़ाद हुए, बा-अमन तरीकों से, शांतिमय तरीकों से और एक अजीब मिसाल हमने दुनिया के सामने रखी।
हम आज़ाद हुए लेकिन आज़ादी के साथ मुसीबतें और बोझे आते हैं। उनका हमें सामना करना है। उनको ओढ़ना है और जो स्वप्न हमने देखा था उसे असल बनाना है। हमें मुल्क को आज़ाद करना था, मुल्क से गैर-हुकूमत को अलग करना था, वह काम पूरा हुआ। लेकिन, गैर-हुकूमत को अलग करके काम पूरा नहीं होता। जब तक एक-एक इंसान हिंदुस्तान का आज़ादी की हवा में न रह सके और जो मुसीबतें हैं वह हटाई न जायें और जो उसकी तकलीफें है, दूर न हो सके इसलिये बहुत बड़ा हिस्सा हमारे काम का बाकी है और जब तक वह बातें पूरी न हों उस वक्त तक हमारा काम जारी रहेगा। बड़े-बड़े सवाल हमारे सामने हैं और उनकी तरफ़ देखकर कुछ दिल दहल जाता है, लेकिन फिर हिम्मत यह सोच कर आती है कि कितने बड़े सवाल हमने पुराने जमाने में हल किए तो क्या हम इन सवालों से दब जायेंगे? ताक़त और गुरूर तो हमारा शक्शी और व्यक्तिगत नहीं है। लेकिन कुछ गुरूर है अपने मुल्क पर, और कुछ इतमीनान है अपनी कौम की ताक़त पर और उन पर जिन लोगों ने इतनी बड़ी मुसीबतें झेली।
इसलिये यह भी इतमीनान होता है कि जो इस वक्त कुछ परेशानियों का बोझ है उनको भी हम ओढ़ेंगे और उन सवालों को भी हम हल करेंगे। आखिर हिंदुस्तान एक आज़ाद मुल्क है, अच्छा है। जब हम आज़ादी के दरवाजे पर खड़े हैं, हम इसको खासतौर से याद रखें कि हिंदुस्तान किसी एक फिरके का मुल्क नहीं है, एक मजहबवालों का नहीं है, बल्कि बहुत सारे और बहुत किस्म के लोगों का है। बहुत धर्म और मजहबों का है। किस तरह की आज़ादी हम चाहते हैं? हमारी तरफ़ से पहले भी यह कहा गया है। पहला रिजोल्यूशन मैंने पहले यहाँ पेश किया था उसमें भी यह कहा गया था कि यह जो आज़ादी हमारी है, वह हर एक हिन्दुस्तानी के लिए है, हर एक हिंदुस्तानी का बराबर-बराबर का हक है, हर हिन्दुस्तानी को इस आज़ादी का बराबर-बराबर की हिस्सेदारी करना है। इस ढंग से हम आगे बढ़ेंगे और कोई ज़्यादती करेगा तो उसे हम रोकेंगे, चाहे वह कोई हो; किसी पर अगर ज़्यादती होगी तो उसकी मदद करेंगे, चाहे वह कोई भी हो। अगर हम इस तरह से चलेंगे तो हम बड़े मसले हल कर लेंगे। लेकिन अगर हम तंग ख्याली में पड़ जाएँगे तो वह मसले हल नहीं होंगे।
यह भाषण 14 अगस्त 1947 की संसदीय कामकाज रिपोर्ट से लिया गया है: भारतीय विधान परिषद के वाद-विवाद की सरकारी रिपोर्ट
पंडित जवाहरलाल नेहरू का यह मूल भाषण आप यहाँ सुन भी सकते हैं:
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