Puliyabaazi is fifty episodes old now! To mark this occasion, we return to discussing a foundational text. In this episode, we discuss insights from Nobel Prize laureate Daniel Kahneman’s classic Thinking, Fast and Slow. The work in this book was instrumental in creating a new discipline of economics known as behavioral economics. The central thesis of the book is that human thinking is actually a dichotomy between two different modes of thought: a "System 1" that is fast, instinctive and emotional; and a "System 2" that is slower, more deliberative, and more logical. Joining us to discuss this work is Nidhi Gupta, who researches and teaches behavioural economics.
इस एपिसोड के साथ पुलियाबाज़ी ने अर्धशतक लगा दिया | तो हमने सोचा कि इस अवसर पर किसी ऐसी कृति पर चर्चा की जाए जिसने हमारी सोच के बारे में सोच को बदल दिया | हम बात कर रहे है मनोवैज्ञानिक डेनियल काहनेमन की किताब “थिंकिंग, फ़ास्ट एंड स्लो” के बारे में | इस किताब ने हमे बताया कि हमारा हर निर्णय दो प्रकार की सोच प्रक्रिया के संघर्ष से उभरता है - एक क्षणिक सोच जो हमारे भाव और सहज-ज्ञान का सहारा लेकर बड़ी तेज़ी से निष्कर्ष निकालती है और दूसरी एक गहन सोच जो धारणाएं और तर्क का प्रयोग कर धीमी गति से निष्कर्ष तक पहुँचती है | क्षणिक सोच कई प्रकार के झुकाव (biases) काभी कारण बन जाती है | इस किताब पर पुलियाबाज़ी करने के लिए हमने बुलाया निधि गुप्ता को, जो बेहवियरल साइंस में संशोधन कर रही है |
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