“In this city you will find men belonging to every nation and people, because of the great trade which it has, and the many precious stones there… the streets and markets are full of laden oxen without count, … and in many streets you come upon so many of them that you have to wait for them to pass, or else have to go by another way.”
—Domingo Paes, Portuguese visitor to Vijayanagara, 1520-22 CE
विजयनगर साम्राज्य की भव्यता का उल्लेख डॉमिंगो पेस, इब्न बतूता और दुआर्ते बार्बोसा जैसे कई ऐतिहासिक मुसाफिरों ने अपने सफरनामे में किया है। वैसे मैं कोई ऐतिहासिक यात्री तो नहीं हूँ, पर अपने यादगार सफ़र का एक छोटा सा ब्यौरा तो लिख ही सकती हूँ।
हम्पी भारत की 42 UNESCO विश्व धरोहर स्थलों (World Heritage Site) में से एक है, इसलिए यहाँ जाने की इच्छा कई सालों से थी। इस बार जून महीने में यात्रा का मौका था तो सोचा कि इस सूखे और गर्म इलाके में जाने का सही वक़्त है। बारिश आ चुकी थी और मौसम काफ़ी सुहाना हो गया था। कई सालों के बाद भारत में किसी जगह इतना साफ़ नीला आसमान देखने को मिला। वैसे इस जगह का भूगोल भी शानदार है। माना जाता है कि रामायण का किष्किंधा राज्य यहीं था, और लगता भी ऐसा ही है। यहाँ मीलों तक बड़े बड़े पत्थर ही पत्थर बिखरे पड़े हैं। और पत्थरों के बीच छोटे-बड़े मंदिर, मंडप और पुरातन इमारतें। किष्किंधा की याद दिलाते हुए बंदर भी आपको मिल जायेंगे और एशिया का एकमात्र स्लोथ भालू का अभ्यारण्य भी पास ही है।
वैसे यहाँ के ज़्यादातर मंदिर खंडित होने की वजह से उनमें पूजा नहीं होती और उनमें मूर्तियाँ भी नहीं हैं। 19वीं शताब्दी की शुरुआत तक ये झाड़ी जंगल से लिप्त थें जब अंग्रेज़ों ने इस इलाके का सर्वेक्षण किया। 20वीं शताब्दी में इनके रखरखाव का काम हुआ और 1986 में इसे UNESCO World Heritage Site घोषित किया गया।
उत्तर कर्नाटक में स्थित हम्पी कहने को तो खंडहर है, पर 500 साल पुराना ये शहर आज भी शानदार लगता है। हम उसे 16वीं सदी का न्यूयॉर्क कह सकते हैं। न्यूयोर्क इसलिए क्योंकि ये दुनिया के सबसे अमीर शहरों में से एक था, जहाँ एक बड़ी आबादी रहती थी और जहाँ के बाज़ारों में अपना सामान बेचने के लिए दूर दूर से लोग आते थें। विजयनगर साम्राज्य का हम्पी अपने समय का एक कॉस्मोपॉलिटन महानगर था, और उसके सुराग आज भी इन पत्थरों से बनी इमारतों में मौजूद हैं।
हम्पी के बाज़ार
मातंगा हिल से दिखाई पड़ते विरुपक्ष मंदिर के इस दृश्य में मंदिर के सामने का बाज़ार आज भी देख सकते हैं। हर बड़े मंदिर के सामने एक बाज़ार था जिसमें सिल्क, मसाले, गाय-घोड़े और हीरे बिकते थें। हर बाज़ार का अपना specialisation था। कोई बाज़ार घोड़ों के लिए जाना जाता था तो कोई हीरों के लिए।
इन बाज़ारों का वर्णन कई मुसाफिरों ने किया है। १४वीं से १६वीं सदी के लगभग 225 सालों में इतना निर्माण हुआ था कि आज यहाँ 1600 से ज़्यादा मंदिर, मंडप, बाज़ार, किलें, तीर्थ और अन्य कई पुरातन इमारतें मौजूद हैं।
विविधता और व्यापार की झांकी
हम्पी को कॉस्मोपोलिटन इसलिए भी कह सकते हैं क्योंकि यहाँ की वास्तुकला में खूब विविधता है। यहाँ के शिलालेख अलग अलग भाषाओं में लिखे गए हैं और शिल्प कृतियों में भी अलग-अलग संस्कृतियों के तत्व दिखाई देते हैं।
हज़ार राम मंदिर की दीवारों और प्रांगण में तीन रामायण की कहानी शिल्पित हैं। हम्पी का प्रसिद्ध रथ कोणार्क के रथ से प्रेरणा लेकर बनाया गया था। रानी के स्नानगृह और हाथी के अस्तबल इंडो-इस्लामिक शैली में बने हैं। विठ्ठल मंदिर की छत में आपको पूर्व एशियाई प्रभाव दिखाई देगा। मंदिर की दीवारों पर भारत के अलग अलग नृत्य जैसे की गरबा और कलरिपयट्टु करते लोगों की झांकी हैं। विठ्ठल मंदिर कॉम्प्लेक्स में एक मंडप में पुर्तगाली, चीनी और अरबी घोड़ेसवार और व्यापारियों के शिल्प हैं। इन शिल्पों को देखके मालूम पड़ता है कि इस साम्राज्य को अपने कॉस्मोपॉलिटन होने पर गर्व था और उन्होंने अपने शहर की संस्कृति और व्यापार की झाँकियाँ अपने भव्य निर्माणों में शामिल की थीं।
कृष्णदेवराया के राज्य (r. 1509-30 CE) के दौरान विजयनगर साम्राज्य अपनी चोटी पर था। इसी समय कई गीतकार और कलाकार उनकी छत्रछाया में थें। प्रसिद्ध तेलुगु कवी तेनालीरामन भी कृष्णदेवराया के दरबार में शामिल थें। दिलचस्प बात ये है कि तेनालीरामन की मृत्यु और बीरबल का जन्म एक ही साल में हुआ था। ये ट्रिविया हमें हमारे गाइड ने बताई। हम्पी में सरकार द्वारा प्रमाणित गाइड काम करते हैं और काफ़ी अच्छे से जानकारी देते हैं। मैं उत्तर भारत के कई मोनुमेंट्स देख चुकी हूँ, पर सब से अच्छे गाइड यहाँ मिलें। (वैसे दिल्ली में कई इतिहास के जानकार ऐतिहासिक टूर करवाते हैं और काफ़ी गहराई से बातें समझाते हैं, पर उन्हें सरकारी गाइड नहीं कहा जा सकता।) पुरे हम्पी और उसके आसपास के इलाकों में काफ़ी स्वच्छता थी। बिखरे कूड़े और प्लास्टिक के ढ़ेर बहुत कम ही दिखें।
कृष्णदेवराया की मृत्यु के बाद विजयनगर का पतन शुरू होता है। तालीकोटा के युद्ध में हार के बाद हम्पी को जला दिया जाता है। इस लिए यहाँ सिर्फ पत्थरों से बने ढांचे मौजूद हैं, लकड़ी के ढांचे जल चुके थें। इस युद्ध की कहानी बताना तो मेरे लिए थोड़ा मुश्किल होगा। ज़्यादातर लोग इसे मुस्लिम सुल्तानों द्वारा एक हिंदू राज्य पर आक्रमण के तौर पर देखते हैं, हालांकि समकालीन इतिहासकार इस विवरण से पुरी तरह सहमत नहीं हैं।
हम्पी के बारे में विलियम डेलरिम्पल का एक सुंदर लेख मिला जिसे आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
यहाँ ASI (Archeological Survey of India) के काम की कुछ आलोचना भी सुनने को मिली। पुरानी इमारतों को ठीक करते करते कुछ ज़्यादा ही ठीक कर देने का आरोप ASI पे लगता रहता है। अब ये साइट UNESCO की देखरेख में है तो ऐसी अति उत्साही मरम्मत जिनमें इमारत का असली स्वरूप बदल जाये उस पर कुछ अंकुश लगा है।
मेरे लिए हम्पी में सबसे अचरज की बात थी इस जगह का स्केल। इतने बड़े इलाके में ये पुरातन शहर फैला होगा ये मैंने नहीं सोचा था। और यहाँ के शिल्पों में पुर्तगाली, अरबी और चीनी व्यापारियों को देखकर भी हम आश्चर्यचकित हो गए। ऐसा तो मैंने और कहीं नहीं देखा।
मेरे लिए ये सफ़र काफ़ी यादगार रहा।
-ख्याति
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