"हम जैसे देखें ये जहाँ है वैसा ही, जैसी नज़र अपनी।"
Appreciating the art that energized India's freedom struggle
"हम जैसे देखें ये जहाँ है वैसा ही, जैसी नज़र अपनी।"
प्रसून जोशी लिखित ये पंक्ति कला को देखने-समझने के नज़रिये पर भी लागु होती है। अक्सर लोगों को म्यूजियम या आर्ट गैलरी जैसी जगह उबाऊ सी लगती है। लेकिन किसी म्यूजियम या आर्ट गैलरी का आनंद लेने के लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है सही संगती की। आर्ट गैलरी जाओ तो ऐसे किसी साथी के साथ जो खुले दिमाग से कला को देखने और परखने के लिए तत्पर हो, और जो आपकी भी जिज्ञासा को जगाये। ख़ुशनसीबी से मेरे पास ऐसा एक भाईदोस्त है।
“दीदी, आप बंगलुरु की नेशनल गैलरी ऑफ़ मॉडर्न आर्ट्स गए हो क्या? वहाँ नन्दलाल बोस की कलाकृतियों का एक्सहिबिशन लगा है।” अप्पू ने पूछा।
अप्पू, हमारी दोस्त रोशनी और मैं कबन पार्क में टहल रहे थे। ‘We, the Citizens’ के प्रकाशित होने के मौके पर में बंगलुरु में थी। संविधान और उससे जुड़ी बातों में दिलचस्पी तो पहले से थी। और नंदलाल बोस तो वो कलाकार है जिनकी कला संविधान के पन्नो को सुशोभित करती है। मेरे अंदर का illustrator संविधान के illustrator की कलाकारी देखने के लिए उत्सुक हो गया।
“हाँ, चलो चलते हैं।”
नेशनल गैलरी ऑफ़ मॉडर्न आर्ट (NGMA) १०० साल पुरानी एक शानदार ईमारत में स्थित है। ‘हरिपुरा पेनल्स’ ४०० कलाकृतियों का एक संकलन है जो नंदलाल बोस ने गांधीजी के विशेष आग्रह पर बनाया था। अवसर था १९३८ में हरिपुरा में हो रही इंडियन नेशनल कांग्रेस की सभा जिसमें २ लाख से ज़्यादा लोग शामिल होने वाले थें। उस सभा को सुशोभित करने की ज़िम्मेदारी दी गयी थी नंदलाल बोस को जिन्हें भारत में मॉडर्न आर्ट के पिता का दर्जा दिया जाता है।
ये सभा हो रही थी एक गाँव में। इसलिए इन कलाकृतियों में गाँववासियों के दैनिक जीवन से जुड़े विषयों का चित्रण किया गया, जैसे कि अलग अलग काम करने वाले लोग, अलग अलग प्रकार के संगीतकार, वगैरह। इन कलाकृतियों में भारतीय शैली की छाप तो ज़रूर नज़र आती है, और उसके साथ ही मॉडर्न शैली की सरलता भी दिखाई पड़ती है।
आर्ट गैलरी का सुंदर सेट-उप इस एक्सहिबिशन को और निखार रहा था। गैलरी की विंटेज टाइल्स दीवारों पर लगी कृतियों की सादगी को अच्छा कॉम्प्लीमेंट कर रही थी।
अक्सर जब हम किसी नामी कलाकृति को देखते हैं, खासकर अगर हम उसका फोटो देखते हैं तो लगता है, “अरे, ऐसी क्या बात है इस पेंटिंग में?” ऐसा होना स्वाभाविक है, अगर आप उस कलाकृति के बनाने के समय को नज़रअंदाज़ करें तो। किसी भी कलाकृति, चाहे वो पेंटिंग हो या फिल्म या और कोई माध्यम, उसे समझने के लिए ये समझना ज़रूरी होता है कि उसे बनानेवाला कलाकार किस समय और सन्दर्भ में उसे बना रहा है।
नंदलाल बोस बंगाल स्कूल ऑफ़ आर्ट के स्थापक अबनींद्रनाथ ठाकुर के शिष्य थें। अबनिंद्रनाथ ठाकुर ने मुग़ल और राजपूत कला शैली को एक मॉडर्न स्वरुप में ढालने का बीड़ा उठाया था। उस समय आर्ट स्कूल में सिखाई जाने वाली पाश्चात्य कला शैली से हटकर भारतीय शैली और भारतीय विषयवस्तु आधारित एक मॉडर्न कलाशैली विकसित करने की कोशिश थी जो सफल रही। हरिपुरा पेनल्स में हम इस प्रयास को देख सकते हैं। भारतीय पटचित्रों और अजंता-इलोरा की कलाकृतियों की भी छाप दिखाई देती है। भारत की स्वतंत्रा के आंदोलन में भाग ले रहे लोगों के लिए ये कृतियाँ बनाई गयी थीं। इस संदर्भ के साथ देखने से ये सिर्फ एक कलाकृति न रहते एक राजनीतिक आंदोलन का अभिन्न हिस्सा मालूम पड़ती है। करीब २.५ लाख लोग इस समारोह में शामिल हुए थें। बहुत ही कम कलाकारों को इतनी बड़ी ऑडियंस नसीब होती है।
नंदलाल बोस की कला इससे पहले भी आज़ादी की राह का हिस्सा रह चुकी है। गाँधीजी की यह linocut कृति आपने देखी होगी। यह कृति गांधीजी की आइकोनिक छविओं में से एक है जिसे नंदलाल बोस ने दांडी कूच के ६ ही दिनों के बाद बनायीं थी। कितने कलाकारों ने इस छवि से प्रेरणा ली होगी।
गैलरी की बिल्डिंग भी काफी शानदार थी। आस पास हरे पेड़ और विंटेज ईमारत के चलते लग रहा था मानो कि कला सिर्फ गैलरी की दीवारों तक ही सीमित नहीं थी, खिड़की के बहार उतना ही सुंदर नज़ारा था। अफ़सोस कि गैलरी के चौकीदार काफ़ी कड़क थें। कलाकृति की फोटो के सिवाय और कोई फोटो या सेल्फी लेने की अनुमति नहीं थी। मुझे सुंदर फर्श और खिड़की की फोटो लेने पर भी डाँट पड़ गयी।
जाते जाते हम कुछ ज्यादा ही कड़क चौकीदारों को कोसते कोसते गैलरी से निकले। अबनींद्र नाथ ठाकुर, मक़बूल फ़िदा हुसैन और कई और कलाकारों की कलाकृतियाँ भी एक हॉल में प्रदर्शित थीं।निकलते निकलते हम तीनों के मन में संतोष का भाव था। कुछ नया देखा और सीखा ऐसा लगा। एक अच्छी रविवार की शाम से और क्या चाहिए?
-ख्याति
Puri sahmati hai is baat se ki....kisi bhi art ko bina context ke appreciate kar paana bajut mushkil kaam jai. El saathi chahiye hi ....context ka gyan rakhne wala.